महाभारत और पुराणों में ऋषि दुर्वासा और राजा अम्बरीश की कथा का विशेष महत्व है। यह कथा न केवल धर्म और तपस्या के महत्व को उजागर करती है, बल्कि यह यह भी दर्शाती है कि भगवान की सच्ची भक्ति और समर्पण के परिणाम हमेशा सकारात्मक होते हैं। आइए जानते हैं इस रोचक कथा को।
राजा अम्बरीश का तप और भक्ति
राजा अम्बरीश एक अत्यंत पवित्र और भक्तिपूर्ण राजा थे। उन्होंने भगवान श्रीविष्णु की उपासना में अपने समय का अधिकांश भाग व्यतीत किया। एक बार उन्होंने भगवान श्रीविष्णु के लिए विशेष उपवास का आयोजन किया। यह उपवास 12 महीनों तक चला, जिसमें उन्होंने हर एकादशी को बिना जल के उपवासी रहने का संकल्प लिया। राजा अम्बरीश का यह कठिन व्रत कार्तिक माह की द्वादशी के दिन समाप्त होना था, जो एक महत्वपूर्ण धार्मिक अवसर था।
ऋषि दुर्वासा का आगमन
कार्तिक द्वादशी के दिन, ऋषि दुर्वासा अपने 100 शिष्यों के साथ राजा अम्बरीश के महल में पहुंचे। राजा अम्बरीश ने उन्हें हर्षित मन से स्वागत किया और कहा, "आपका हमारे महल में स्वागत है, और आज के दिन, जो मेरे व्रत का अंतिम दिन है, आपके दर्शन से मेरा सौभाग्य और भी बढ़ गया। कृपया आज का भोजन हमारे साथ ग्रहण करें।"
दुर्वासा ऋषि का गुस्सा और अम्बरीश का धैर्य
जब ऋषि दुर्वासा ने राजा से भोजन करने का अनुरोध किया, तो राजा ने अपनी प्रजा की भलाई के कारण एक छोटी सी गलती की। उन्होंने पहले ही जल ग्रहण किया था, जबकि ऋषि के लिए भोजन करने से पहले जल ग्रहण करना जरूरी था। इस पर ऋषि दुर्वासा क्रोधित हो गए और उन्होंने राजा अम्बरीश को शाप देने का निश्चय किया। वे यह भी चाहते थे कि राजा अम्बरीश का व्रत भंग हो जाए।
भगवान श्रीविष्णु की कृपा
राजा अम्बरीश ने गुस्से में आकर किसी प्रकार का उत्तर नहीं दिया। उन्होंने अपनी स्थिति को शांतिपूर्वक स्वीकार किया। इसी बीच, भगवान श्रीविष्णु ने ऋषि दुर्वासा को अपनी दिव्य शक्ति से रोका और उन्हें अपनी भक्त के पास जाने का आदेश दिया। ऋषि दुर्वासा ने अंततः अपनी गलती को समझा और राजा से माफी मांगी। भगवान श्रीविष्णु के आशीर्वाद से राजा अम्बरीश का व्रत पूर्ण हुआ और वह पुण्य के भागी बने।
निष्कर्ष
यह कथा हमें यह सिखाती है कि सच्चे भक्ति और तपस्या के परिणाम हमेशा श्रेष्ठ होते हैं। राजा अम्बरीश का समर्पण और धैर्य भगवान के आशीर्वाद के कारण ही सफल हुआ। हमें भी अपने जीवन में धैर्य और श्रद्धा के साथ भगवान की भक्ति करनी चाहिए, ताकि हम भी पुण्य के भागी बनें।
No comments:
Post a Comment