सतयुग का समय पौराणिक कथाओं से भरा हुआ है, जिसमें धर्म, तप और अद्वितीय घटनाओं का विवरण मिलता है। ऐसी ही एक कथा दक्ष प्रजापति की दो कन्याओं, कद्रू और विनता, के जीवन से जुड़ी है। इनका विवाह महान ऋषि कश्यप से हुआ। दोनों पत्नियां अपनी साधना और तप के लिए प्रसिद्ध थीं।
कश्यप ऋषि का आशीर्वाद
एक दिन कश्यप ऋषि अपनी पत्नियों से अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने कद्रू और विनता से कहा, "तुम जो चाहो, वरदान मांग सकती हो।" इस पर कद्रू ने कहा, "मुझे एक हजार तेजस्वी नाग पुत्र प्राप्त हों।" वहीं विनता ने अलग वरदान मांगा। उसने कहा, "मुझे केवल दो पुत्र प्राप्त हों, लेकिन वे बल, तेज और विक्रम में कद्रू के पुत्रों से श्रेष्ठ हों।"
कश्यप ऋषि ने दोनों की इच्छाएं सुनकर 'एवमस्तु' कह दिया। वरदान पाकर दोनों पत्नियां अत्यंत प्रसन्न हुईं। ऋषि ने उन्हें गर्भ की सावधानी से रक्षा करने का निर्देश दिया और वन में तपस्या के लिए चले गए।
अंडों का जन्म और कद्रू की संताने
समय बीतने पर कद्रू ने एक हजार और विनता ने दो अंडे दिए। दोनों अपने-अपने अंडों की देखभाल में जुट गईं। पांच सौ वर्षों के बाद, कद्रू के अंडों से एक हजार तेजस्वी नाग पुत्र निकले। ये सभी वरदान के अनुरूप शक्तिशाली और बुद्धिमान थे।
लेकिन विनता के अंडों से अब तक कोई संतान नहीं निकली। यह देखकर विनता का धैर्य टूटने लगा।
विनता की अधीरता और अरुण का जन्म
अधीर होकर, विनता ने अपने हाथों से एक अंडा फोड़ दिया। उस अंडे से एक बालक निकला, जो केवल कमर तक ही विकसित हुआ था। उसका शरीर अधूरा था।
बालक ने क्रोधित होकर अपनी मां से कहा, "मां! तुम्हारी अधीरता के कारण मेरा यह अधूरा रूप हुआ है। यदि तुमने धैर्य रखा होता, तो मैं पूर्ण रूप से विकसित होता। अब मैं अरुण नाम से जाना जाऊंगा और सूर्यदेव का सारथी बनूंगा।"
अरुण अपने कर्तव्य के लिए चला गया, लेकिन जाते-जाते उसने विनता को चेतावनी दी, "दूसरे अंडे को फोड़ने की गलती मत करना। वह बालक पूर्ण रूप से विकसित होकर जन्म लेगा और अपनी महानता से तुम्हारा मान बढ़ाएगा।"
गरुड़ का जन्म
विनता ने इस बार धैर्य रखा। समय आने पर दूसरे अंडे से गरुड़ का जन्म हुआ। गरुड़ का तेज, बल और पराक्रम अद्वितीय था। वह सभी गुणों में कद्रू के नाग पुत्रों से श्रेष्ठ थे। गरुड़ को उनकी शक्ति और पराक्रम के कारण देवताओं के राजा इंद्र ने अपना वाहन बनने का प्रस्ताव दिया, लेकिन गरुड़ ने इसे अस्वीकार कर दिया।
कैसे बने गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन
गरुड़ के जन्म के बाद नागों और विनता के बीच मतभेद उत्पन्न हुए। कद्रू के नाग पुत्रों ने विनता को दासता में रख लिया। गरुड़ ने अपनी मां को इस दासता से मुक्त करने के लिए नागों से संधि की। नागों ने कहा कि यदि गरुड़ अमृत ला सकते हैं, तो वे विनता को मुक्त कर देंगे।
गरुड़ ने अपने पराक्रम और साहस से अमृत को प्राप्त किया, लेकिन नागों को धोखा देकर इसे विष्णु भगवान को समर्पित कर दिया। भगवान विष्णु गरुड़ के बल, भक्ति और निष्ठा से प्रभावित हुए और उन्हें अपना वाहन बनने का आशीर्वाद दिया। इस प्रकार गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन बने और अमरता के प्रतीक बन गए।
नैतिक शिक्षा
यह कथा हमें धैर्य और संयम का महत्व सिखाती है। अधीरता विनाश का कारण बन सकती है, जबकि धैर्य महान उपलब्धियां दिलाता है। गरुड़ का जन्म और उनका विष्णु भगवान का वाहन बनना इस बात का प्रतीक है कि सच्ची भक्ति और पराक्रम के माध्यम से सभी बाधाओं को पार किया जा सकता है।