भागवत पुराण के दशम स्कंद में नारद ऋषि और कुबेर के पुत्रों की एक दिलचस्प कथा का वर्णन मिलता है। नारद ऋषि, जो अपने चंचल स्वभाव और देवताओं के संदेशवाहक के रूप में जाने जाते हैं, कभी-कभी स्थितियों के अनुसार श्राप देने के लिए भी मजबूर हो जाते थे।
कुबेर के दो पुत्र, नलकुबेर और मणिग्रीव, धन, वैभव और शक्ति के मद में चूर रहते थे। एक बार दोनों कैलाश पर्वत पर जलक्रीड़ा कर रहे थे। इसी दौरान नारद ऋषि वहाँ से गुजरे। अपने अंहकार में डूबे नलकुबेर और मणिग्रीव ने ऋषि का सम्मान नहीं किया। ऋषि ने उनकी इस उद्दंडता को देखकर उन्हें चेताने का निर्णय लिया।
कुबेर पुत्रों को लगा नारद ऋषि का श्राप;नारद ऋषि ने दोनों को वृक्ष बनने का श्राप दिया ताकि वे अपने अंहकार को त्यागकर विनम्रता का महत्व समझ सकें। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि जब श्रीकृष्ण बाल रूप में होंगे, तब उनके हाथों से उन्हें मुक्ति मिलेगी। यह कथा हमें विनम्रता और आदर का महत्व सिखाती है।