स्कंद पुराण में विश्वासघात पर एक अत्यंत प्रेरणादायक और शिक्षाप्रद कहानी आती है। इस कहानी के माध्यम से हमें यह समझने को मिलता है कि विश्वास और विश्वासघात के बीच का अंतर और इसके परिणाम किस प्रकार जीवन को प्रभावित कर सकते हैं।
कहानी की शुरुआत एक महान और धर्मपरायण राजा से होती है, जिनका नाम नन्द था। वे चन्द्रवंश के प्रसिद्ध शासक थे और पूरे पृथ्वी पर धर्मपूर्वक शासन करते थे। उनका राज्य सशक्त था और उनके शासनकाल में लोग शांति और समृद्धि का अनुभव करते थे। राजा नन्द का एक पुत्र था, जिसका नाम धर्मगुप्त था। धर्मगुप्त एक नीतिप्रिय और न्यायप्रिय राजा था, जो अपने पिता के कृत्यों को आदर्श मानता था।
राजा नन्द ने अपने पुत्र धर्मगुप्त को राज्य का उत्तराधिकारी नियुक्त किया और उसे राज्य की रक्षा का दायित्व सौंपा। वे स्वयं इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर, आहार पर नियंत्रण रखकर तपस्या के लिए तपोवन चले गए। नन्द का उद्देश्य था कि वे आत्मिक शांति और उच्च ज्ञान प्राप्त करें, ताकि वे समाज और राज्य के भले के लिए कार्य कर सकें।
पिता के तपोवन चले जाने के बाद धर्मगुप्त ने राज्य की जिम्मेदारी संभाली। वे अत्यंत धर्मनिष्ठ और नीति परायण थे। उनका शासन सिद्धांत था कि सभी प्रजा को न्याय मिलना चाहिए, और हर व्यक्ति को अपने कर्मों के अनुसार फल मिलना चाहिए। उनके न्यायप्रिय शासन ने राज्य में शांति और समृद्धि का माहौल बनाए रखा।
यह कहानी सिर्फ राजा नन्द और धर्मगुप्त की नहीं है, बल्कि यह हमें विश्वास और उस पर आधारित रिश्तों की अहमियत को समझाने वाली है। जब किसी ने हमें अपना विश्वास सौंपा हो, तो हमें उसकी रक्षा करनी चाहिए और उस विश्वास का उल्लंघन कभी नहीं करना चाहिए।