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भक्त के प्रेम से वशीभूत भगवान कितने सरल हो जाते हैं ये हमें समझ आता है कर्माबाई की खिचड़ी की कहानी से | तो चलिए सुनते है आज की कहानी |
जीवनजी डूडी राजस्थानके नागौरके कलवा गाँवमें रहनेवाले एक कट्टर कृष्णभक्त थे। २० जनवरी सन् १६१५ई० में, उन्हें एक कन्यारत्नकी प्राप्ति हुई, जिसका नाम उन्होंने करमाबाई रखा। एक बार जीवन जी को बाहर जाना पड़ा और इसलिये, उन्होंने करमाबाईको निर्देश दिया कि वे श्रीकृष्ण के लिये सुबह भोजन (भोग या प्रसाद या नैवेद्य) तैयार करें और चढ़ायें। श्रीकृष्ण के भोग लेनेके बाद ही उन्हें भोजन करना चाहिये, जीवनजी ने करमाबाई को चेतावनी दी।