नरकासुर एक अत्याचारी और क्रूर असुर राजा था, जिसने अपने शक्ति के नशे में चूर होकर देवताओं और अन्य निर्दोष प्राणियों पर अत्याचार किए। उसकी दुष्ट प्रवृत्तियों के कारण देवताओं में भय और आतंक का माहौल बन गया था। उसने कई देवताओं और पवित्र आत्माओं की कन्याओं को बंदी बना लिया था और अपनी शक्ति का गलत उपयोग करके अपने राज्य में आतंक का साम्राज्य स्थापित कर लिया था।
इस अत्याचारी असुर का अंत करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने उसकी ओर कदम बढ़ाए। इस अभियान में श्रीकृष्ण की पत्नी, देवी सत्यभामा ने भी उनकी सहायता की। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सत्यभामा को एक वरदान प्राप्त था, जिसके कारण केवल वही नरकासुर का वध कर सकती थीं। सत्यभामा के साहस और भगवान कृष्ण की शक्ति के साथ, उन्होंने नरकासुर की विशाल सेना का सामना किया और उसे परास्त किया। युद्ध के अंतिम क्षणों में सत्यभामा ने अपने दिव्य बल से नरकासुर का वध कर दिया, जिससे उसका आतंक का साम्राज्य समाप्त हुआ और देवताओं को मुक्ति मिली।
इस विजय को नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है, जो दीपावली के एक दिन पहले आता है। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत और धर्म की स्थापना का प्रतीक है। नरक चतुर्दशी के दिन दीप जलाकर अंधकार को दूर किया जाता है और जीवन में उजाले का स्वागत किया जाता है। यह पर्व हमें यह संदेश देता है कि सत्य और न्याय की राह पर चलते हुए सभी प्रकार की बुराइयों को पराजित किया जा सकता है, चाहे वे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हों।