प्राचीन काल की बात है, एक महान ऋषि थे जिनका नाम शिलाद था। शिलाद अत्यंत धर्मपरायण और तपस्वी थे। हालांकि, उनका जीवन एक अधूरी इच्छा से भरा हुआ था। उनके कोई संतान नहीं थी, लेकिन बच्चों के प्रति उनके हृदय में गहरा स्नेह था। शिलाद ने संतान सुख पाने का निर्णय लिया, परंतु वे साधारण संतान नहीं चाहते थे। उनकी कामना थी कि उन्हें एक ऐसा बालक मिले, जिसे स्वयं भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त हो।
इस विशेष कामना को पूर्ण करने के लिए, शिलाद ने भगवान शिव की कठोर तपस्या आरंभ की। दिन-रात भक्ति में लीन होकर उन्होंने वर्षों तक तप किया। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट हुए। शिव ने शिलाद से पूछा, "हे शिलाद, तुम क्या वरदान चाहते हो?"
शिलाद ने भगवान शिव के चरणों में झुककर कहा, "हे महादेव, मेरी एकमात्र इच्छा है कि मुझे एक ऐसा पुत्र प्राप्त हो, जो आपके आशीर्वाद से जन्मा हो।" भगवान शिव शिलाद की भक्ति से प्रसन्न हो गए और मुस्कुराकर बोले, "हे शिलाद, तुम्हारी इच्छा शीघ्र ही पूरी होगी। तुम्हें एक विशेष संतान का सुख मिलेगा।" यह कहकर भगवान शिव अंतर्धान हो गए।
शिलाद अत्यंत प्रसन्न मन से अपने घर लौट आए। उनका हृदय यह सोचकर गदगद था कि अब उन्हें भगवान शिव के आशीर्वाद से संतान का सुख प्राप्त होगा। अगले दिन प्रातः काल, शिलाद अपने खेत में हल जोतने गए। जैसे ही उन्होंने हल चलाना शुरू किया, उन्होंने देखा कि उनके हल के सामने एक अद्भुत तेजस्वी बालक प्रकट हुआ।
उस बालक का रूप अद्वितीय था। उसका शरीर दिव्य प्रकाश से चमक रहा था, और उसके तेज को देखकर शिलाद समझ गए कि यह कोई साधारण बालक नहीं है। वह बालक स्वयं भगवान शिव का वरदान था। शिलाद ने उस बालक को अपनी गोद में उठाया और अपने हृदय से लगा लिया। उनका हृदय आनंद और गर्व से भर उठा।
इस प्रकार, शिलाद की भक्ति और भगवान शिव की कृपा से उन्हें एक अद्भुत संतान प्राप्त हुई। वह बालक आगे चलकर नंदी के नाम से प्रसिद्ध हुआ और भगवान शिव का परम भक्त और वाहन बना। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति और समर्पण से कोई भी इच्छा पूरी हो सकती है, बशर्ते वह सच्चे हृदय से की जाए।
निष्कर्ष:
यह कथा न केवल शिलाद ऋषि की भक्ति और भगवान शिव की कृपा को दर्शाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि जब हमारी इच्छाएं पवित्र और निश्छल होती हैं, तो ईश्वर स्वयं उन्हें पूर्ण करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं।